Saturday, August 31, 2019

हिन्दी कविता: ज़िन्दा रहने तो दो

फिर लगाना इल्ज़ाम,
पहेले ज़िन्दा रहने तो दो,
इन्सानियत के कातिल कहते हो पर मेरे बच्चों को,
पहले इन्सानियत का पाठ पढ़ने तो दो।

काश्मीर को गाली दो पर,
एक दफ़ा कश्मीरी बनकर तो देखो,
मेहफ़ूज़ न रख पाओ न सही,
पर यहाँ मेहफ़ूज़ रह कर तो देखो।

हमे गाली दे दो, चाहे मार दो,
पर पहेले दो दिन हमारी ज़िन्दगी जी कर तो देखो,
फिर लगाना इल्ज़ाम,
पहेले ज़िन्दा रहने तो दो।

- अभिजीत मेहता
Books authored by Mr. Abhijeet Mehta
















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