लिखूँगा जितने लफ्ज़ साथ देँगे, बाकी बचा तुम समझ लेना,
वक़्त बड़ा फ़रामोश है, ये आखरी इश्तहार पढ़ लेना।
कहने को बोहोत कुछ है, सुन पाओ उतना सुन लेना,
बाकी फिर कभी बातें करने मेरी क़ब्र पे आया करना।
अल्लाह जगह कहाँ देगा वो मालूम वहीँ जाके करना पड़ेगा,
जन्नत में रखे उतने अच्छे नहीं, पर जहन्नम के बुरे लोग से हम कहाँ।
छोड़ू मैं साँसे तब शायद अलविदा न कह सकू,
वक़्त बड़ा फ़रामोश है, ये आखरी इश्तहार पढ़ लेना।
गरीबों से भरा बड़ा शानदार रखना हमारा जनाज़ा,
जीतेजी उनके लिए हम न कर सकें वो हमारे नाम पे तुम कर जाना।
बेहूदी बेरुख़ी हुई है हमे हमशे, जीतेजी मरने से मारना अच्छा होगा,
किताबो और सोसिअल मीडिया में दबी कविताएं लोगो तक पोहोचा देना।
अम्मी-अब्बा और उन सबका जो हमसे बदमाश नही ख़याल रखना जाना,
वक़्त बड़ा फ़रामोश है, ये आखरी इश्तहार पढ़ लेना।
इस सँसार में इन्सान से रहने को काबिल नहीँ हम,
तुम्हे जानवर कुत्ते से मिले कभी तो फिर अपना लेना।
सब छोड़ कभी बिना कहे चले जाए तो मत रोना,
अपने आँसू किसी अच्छे इन्सान के लिए बचा के रखना।
कृष्ण से ही तो सिख है कि लड़ न पाओ तो भाग जाना,
वक़्त बड़ा फ़रामोश है, ये आखरी इश्तहार पढ़ लेना।
- अभिजीत मेहता
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