जहां शांति के पाठ पढ़ाए जाते थे,,
वहाँ किताबे छोड़, हथियार थामे जाएंगे।
जिन हाथो में कलतक बरतन पाए थे,
उनमें किसी बंदूक से औज़ार पाए जाएंगे।
न अल्लाह के बन्दे है वो,
न राम के योद्धा है वो।
किसी वज़ीर-ए-आज़म की सेना से मारे गए,
कुछ काफिरों के परिवार है वो।
काफ़िर है वो तेरे लिए ए वज़ीर,
ख़ुद में इंसानियत के ख्वाब है वो।
कुछ लम्हों में मची तबाही में,
थोड़े से बचे इन्सान है वो।
किसी रोज़ उस बापू ने दिखाया एक ख़्वाब था,
सत्य, अहिंसा और शांति का पैगाम था।
उस पल जो अंग्रेज़ ने जलाया वो जलियावाला बाग़ था,
आज तूने जो जलाया वो शायद शाहीन बाग़ था।
अब लड़ेंगे हम, छीनेंगे हम,
हिन्दू-मुस्लिम हरघर में भगतसिंह को पूजेंगे हम।
शांति से न दी आज़ादी,
अब उस आज़ादी को तेरी कुर्सी को जलाकर लेंगे हम।
हर गली, महोल्ला जलाकर,
एक हवन कुंड बनाया तूने।
पहले गुजरात का और,
अब हिंदुस्तान का राजयज्ञ किया तूने।
जिस खून की तूने होली खेली,
उस खून का रंग लगाएंगे।
इस शांति के सफेद परचम को हम,
लाल झंडा बनाएंगे।
चीख-चीख हम थक है गए,
अब लड़कर जवाब दे जाएंगे।
खामोशी की मजबूरी को हथियार बना,
तेरे सीने को चीर डालेंगे।
हिन्दू, मुस्लिम, सीख, ईसाई,
आपस मे मील जाएंगे।
जो छूत-अछुत में लड़ रहे थे,
वो आज़ादी के लिए सर उठाएंगे।
जहां शांति के पाठ पढ़ाए जाते थे,,
वहाँ किताबे छोड़, हथियार थामे जाएंगे।
जिन हाथो में कलतक बरतन पाए थे,
उनमें किसी बंदूक से औज़ार पाए जाएंगे।
- अभिजीत मेहता
लाल सलाम
लाल सलाम
वहाँ किताबे छोड़, हथियार थामे जाएंगे।
जिन हाथो में कलतक बरतन पाए थे,
उनमें किसी बंदूक से औज़ार पाए जाएंगे।
न अल्लाह के बन्दे है वो,
न राम के योद्धा है वो।
किसी वज़ीर-ए-आज़म की सेना से मारे गए,
कुछ काफिरों के परिवार है वो।
काफ़िर है वो तेरे लिए ए वज़ीर,
ख़ुद में इंसानियत के ख्वाब है वो।
कुछ लम्हों में मची तबाही में,
थोड़े से बचे इन्सान है वो।
किसी रोज़ उस बापू ने दिखाया एक ख़्वाब था,
सत्य, अहिंसा और शांति का पैगाम था।
उस पल जो अंग्रेज़ ने जलाया वो जलियावाला बाग़ था,
आज तूने जो जलाया वो शायद शाहीन बाग़ था।
अब लड़ेंगे हम, छीनेंगे हम,
हिन्दू-मुस्लिम हरघर में भगतसिंह को पूजेंगे हम।
शांति से न दी आज़ादी,
अब उस आज़ादी को तेरी कुर्सी को जलाकर लेंगे हम।
हर गली, महोल्ला जलाकर,
एक हवन कुंड बनाया तूने।
पहले गुजरात का और,
अब हिंदुस्तान का राजयज्ञ किया तूने।
जिस खून की तूने होली खेली,
उस खून का रंग लगाएंगे।
इस शांति के सफेद परचम को हम,
लाल झंडा बनाएंगे।
चीख-चीख हम थक है गए,
अब लड़कर जवाब दे जाएंगे।
खामोशी की मजबूरी को हथियार बना,
तेरे सीने को चीर डालेंगे।
हिन्दू, मुस्लिम, सीख, ईसाई,
आपस मे मील जाएंगे।
जो छूत-अछुत में लड़ रहे थे,
वो आज़ादी के लिए सर उठाएंगे।
जहां शांति के पाठ पढ़ाए जाते थे,,
वहाँ किताबे छोड़, हथियार थामे जाएंगे।
जिन हाथो में कलतक बरतन पाए थे,
उनमें किसी बंदूक से औज़ार पाए जाएंगे।
- अभिजीत मेहता
लाल सलाम
लाल सलाम
No comments:
Post a Comment